(एक प्रेरणादायक जीवनगाथा)
Dr. Satinder Maken
“जिसने रेडियम खोजा, उसने खुद को भी इतिहास में रोशन कर दिया।”-✍🏻 – एक श्रद्धांजलि, मैडम क्यूरी को।
विज्ञान के इतिहास में कुछ नाम ऐसे हैं जो न केवल अपने ज्ञान और शोध से, बल्कि अपने साहस, संघर्ष, और संकल्प से भी प्रेरणा बन जाते हैं। मैरी क्यूरी (Marie Curie) ऐसा ही एक अद्वितीय नाम हैं — जो विज्ञान की दुनिया में पहली महिला थीं जिन्होंने दो अलग-अलग विषयों में नोबेल पुरस्कार जीतकर इतिहास रचा।
प्रारंभिक जीवन और संघर्ष
मैरी क्यूरी का जन्म 7 नवम्बर 1867 को पोलैंड के वारसॉ में हुआ था। बचपन से ही उनकी जिज्ञासा और शिक्षा के प्रति समर्पण अद्वितीय था। उस दौर में महिलाओं के लिए उच्च शिक्षा के अवसर सीमित थे, लेकिन मैरी ने हर चुनौती को पीछे छोड़ते हुए पेरिस की सोरबोन यूनिवर्सिटी में दाख़िला लिया और फिजिक्स तथा गणित में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया।
🏆 नोबेल पुरस्कार – विज्ञान में ऐतिहासिक उपलब्धियाँ
मैरी क्यूरी ने 1903 में भौतिकी (Physics) और 1911 में रसायन (Chemistry) में नोबेल पुरस्कार जीतकर इतिहास रच दिया।
- 1903 में उन्हें उनके पति पीयर क्यूरी और हेनरी बैकेरल के साथ रेडिएशन पर शोध के लिए नोबेल दिया गया।
- 1911 में उन्होंने रेडियम और पोलोनियम तत्वों की खोज और उन्हें शुद्ध रूप में अलग करने के लिए रसायन विज्ञान का नोबेल जीता।
आज तक भी यह कारनामा केवल मैरी क्यूरी ने ही किया है कि दो अलग-अलग विषयों में नोबेल पुरस्कार जीता।

पारिवारिक जीवन और मातृत्व का संघर्ष
मैरी और पीयर क्यूरी की दो बेटियाँ थीं –
- आइरीन क्यूरी (1897)
- ईव क्यूरी (1904)
लेकिन ईव के जन्म के डेढ़ साल बाद, एक दुखद सड़क दुर्घटना में पीयर क्यूरी की मृत्यु हो गई। उस समय मैरी न केवल अपने वैज्ञानिक अनुसंधानों में अत्यधिक व्यस्त थीं, बल्कि अब उन्हें दो बेटियों की परवरिश अकेले करनी थी।
मैरी को पेरिस के स्कूलों की शिक्षा प्रणाली पसंद नहीं थी, अतः उन्होंने अपने दोनों बच्चों को घर पर शिक्षा देना तय किया। एक वैज्ञानिक माँ द्वारा बच्चों को दिया गया यह गृह-शिक्षण भविष्य में असाधारण उपलब्धियों में बदल गया।

बेटियों की असाधारण सफलताएँ
आइरीन क्यूरी:
माँ की राह पर चलते हुए, आइरीन भी एक प्रतिष्ठित वैज्ञानिक बनीं।
- 1935 में, उन्होंने अपने पति फ्रेडरिक जॉलीओट के साथ भौतिकी में नोबेल पुरस्कार जीता।
- यह सम्मान उन्हें कृत्रिम रेडियोधर्मिता (artificial radioactivity) पर शोध के लिए मिला।
ईव क्यूरी:
ईव को विज्ञान में नहीं, बल्कि संगीत, लेखन और पत्रकारिता में रुचि थी।
- उन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान युद्ध संवाददाता के रूप में कार्य किया।
- उनके लेखन के लिए उन्हें पुलित्ज़र पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया।
- बाद में उन्होंने UNICEF की फर्स्ट लेडी के रूप में कार्य किया, और विश्वभर में बाल अधिकारों के लिए आवाज़ उठाई|

जीवन में उम्र नहीं, उत्साह मायने रखता है
एक प्रेरणादायक प्रसंग ईव क्यूरी की आत्मकथा ‘मैडम क्यूरी’ में आता है, जिसमें वह लिखती हैं कि जब उनकी माँ 56 वर्ष की थीं, तब दोनों बेटियों ने उन्हें तैराकी सिखाना शुरू किया।
ईव लिखती हैं:
“माँ की छरहरी कोमल देह, उसकी खूबसूरत गोरी बाँहें और किसी आकर्षक युवती जैसे हावभावों को देख कर आप स्विमिंग कैप के नीचे छिपे उसके पके बालों और चेहरे की झुर्रियों को भूल जाते थे... उसने तय कर लिया था कि वह यूनिवर्सिटी में अध्यापकों की तैराकी प्रतियोगिता के सभी रेकॉर्ड तोड़ेगी।”
यह प्रसंग न केवल मैरी के जीवन के प्रति उत्साह को दर्शाता है, बल्कि यह भी कि विज्ञान की यह देवी कभी उम्र या जिम्मेदारियों को अपने आत्म-निर्माण में बाधा नहीं बनने देती थी।

मैरी क्यूरी- एक स्त्री, एक वैज्ञानिक, एक माँ – और एक प्रेरणा
मैरी क्यूरी का जीवन इस बात का प्रमाण है कि साहस, समर्पण और संकल्प से कोई भी सामाजिक या पारिवारिक भूमिका किसी महान उद्देश्य की राह में बाधा नहीं बन सकती।
उन्होंने न केवल विज्ञान की दुनिया में अमिट छाप छोड़ी, बल्कि एक माँ के रूप में अपने बच्चों को ज्ञान, मूल्य और स्वाभिमान का ऐसा संस्कार दिया कि उनकी बेटियाँ भी दुनिया के मंच पर चमकीं।
आज मैरी क्यूरी केवल विज्ञान की नहीं, बल्कि सम्पूर्ण स्त्री शक्ति की प्रतीक बन चुकी हैं।
उनका जीवन यह सिखाता है कि विज्ञान, मातृत्व, और आत्मनिर्भरता — एक साथ संभव हैं, बशर्ते आप भीतर से दृढ़ हों।

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