“ये स्कूटी नहीं… मेरे सपनों की उड़ान है” मेहनत का इनाम और आत्मनिर्भरता की शुरुआत

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AGCTimes, Sri Ganganagar, 28 June 2025

सानिया नागौरी, एक मध्यमवर्गीय परिवार से आने वाली सामान्य सी लड़की, जिसकी आँखों में असाधारण सपने थे। राजस्थान के अग्रवाल गर्ल्स कॉलेज की यह बी.कॉम. तृतीय वर्ष की छात्रा, दिन-रात मेहनत करती रही — किताबों के पन्नों में भविष्य तलाशती, खुद को सीमाओं से परे सोचती। और आज, जब उसे कालीबाई भील मेधावी छात्रा स्कूटी योजना के अंतर्गत एक TVS Jupiter स्कूटी प्राप्त हुई, तो वह स्कूटी सिर्फ एक वाहन नहीं, बल्कि एक प्रतीक बन गई ” उसकी मेहनत का इनाम, उसकी उड़ान का पहला पंख।”

कॉलेज परिसर में गूँजा गर्व — जब सानिया अपने पिता के साथ पहुँची

जिस दिन सानिया को स्कूटी मिली, वह क्षण न केवल उसके लिए, बल्कि पूरे अग्रवाल गर्ल्स कॉलेज के लिए एक गर्वपूर्ण उत्सव बन गया।
अपने पिता श्री कमरूदीन के साथ जब वह स्कूटी लेकर कॉलेज के गेट पर पहुँची, तो पूरे परिसर का माहौल बदल गया। छात्राओं की तालियों की गूंज, शिक्षकों के मुस्कुराते चेहरे, और निदेशक डॉ. ओपी गुप्ता व प्राचार्य डॉ. अरुण वत्स, समस्त संकाय सदस्यों तथा सहपाठी छात्राओं द्वारा किए गए गर्मजोशी भरे स्वागत ने इस सादे से दिन को यादगार बना दिया।

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सानिया की आँखों में जहाँ गर्व था, वहीं उनके पिता की आँखों में हल्की सी नमी — शायद इस सच्चाई को महसूस करते हुए कि उनकी बेटी आज न केवल पढ़ रही है, बल्कि सम्मान पा रही है, आगे बढ़ रही है, उड़ान भर रही है
उसने पूरे स्टाफ और सहपाठियों का मुँह मीठा करवाया, और हर कोई बस एक ही बात कह रहा था —
“ये स्कूटी नहीं… सानिया के सपनों की रफ्तार है।”

मेहनत का इनाम जब ‘पहिए’ बनकर सामने आता है

बेटियाँ जब पढ़ती हैं, तो न सिर्फ घर-परिवार, बल्कि समाज की सोच बदलती है। और जब उन्हें उनकी मेहनत का इनाम मिलता है, तो वह इनाम किसी ट्रॉफी से कहीं ज़्यादा मूल्यवान होता है वह आत्मसम्मान, पहचान और प्रेरणा का प्रतीक बन जाता है।
सानिया ने वाणिज्य संकाय में सर्वाधिक अंक प्राप्त किए, और इसी उत्कृष्टता के चलते आज उसने जो स्कूटी प्राप्त की है, वह उसकी किताबों से लेकर कॉलेज तक की यात्रा को आसान ही नहीं बनाएगी, बल्कि उसे स्वतंत्र और आत्मनिर्भर बनाएगी।

स्वतंत्रता के पहिए पर शिक्षा की दिशा में तेज़ रफ्तार

गाँव-कस्बों की बेटियाँ अक्सर आवागमन की असुविधा, सुरक्षा की चिंता, और सामाजिक दृष्टिकोण के कारण शिक्षा से वंचित रह जाती हैं। ऐसे में सरकार द्वारा दी गई एक स्कूटी न केवल उन्हें कॉलेज पहुँचाने का माध्यम बनती है, बल्कि यह उन्हें बताती है — “तुम अकेली नहीं हो, तुम्हारे साथ समाज और सरकार भी है।”

यह योजना उन्हें रोज़ाना की असुविधाओं से मुक्ति दिलाकर शिक्षा को अधिक सुलभ और सुरक्षित बनाती है। इससे बेटियों को समाज में आगे बढ़ने का आत्मबल मिलता है — बिना किसी संकोच के, बिना किसी सहारे के।

आत्मनिर्भरता की पहली सवारी

स्कूटी मिलने पर सानिया कहती है,“अब मुझे किसी के ऊपर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा। मैं खुद कॉलेज जा सकती हूँ, ट्यूशन, लाइब्रेरी और भविष्य की तैयारी खुद तय कर सकती हूँ।”

यह आत्मनिर्भरता ही वो बीज है जिससे एक आत्मविश्वासी महिला, एक सक्षम नागरिक और एक सशक्त समाज जन्म लेता है। और यही इस योजना की सबसे बड़ी उपलब्धि है एक लड़की को अपने निर्णय स्वयं लेने की शक्ति देना।

कालीबाई भील: आदिवासी समाज की नायिका

इस योजना का नाम जिस महिला के नाम पर रखा गया है कालीबाई भील, वे मात्र 14 वर्ष की थीं जब उन्होंने 1947 में शिक्षा के अधिकार की रक्षा करते हुए बलिदान दिया था। राजस्थान के डूंगरपुर जिले की इस वीरांगना ने जब देखा कि ब्रिटिश अफसर उनके गुरु को पकड़ने आए हैं, तो उन्होंने बीच में आकर उन्हें बचाने का प्रयास किया और शहीद हो गईं।
कालीबाई न केवल आदिवासी समाज की प्रतीक बनीं, बल्कि वे नारी शिक्षा की अमर ज्योति भी हैं।

उनके नाम पर चलाई गई यह योजना, बेटियों को बताती है कि उनकी शिक्षा के लिए कभी किसी ने प्राण तक त्याग दिए थे और आज उन्हें शिक्षा के रास्ते पर बढ़ने के लिए स्कूटी जैसे साधन मिल रहे हैं।

बेटियों को दें ‘पहचान’, ना कि ‘रियायत’

सरकारी योजनाएँ जब वास्तविक ज़रूरतमंदों तक पहुँचती हैं, तो वे महज़ ही सहायता नहीं होतीं बल्कि वे समाज की दिशा बदलने वाले कदम होती हैं। कालीबाई भील स्कूटी योजना भी एक ऐसा ही प्रयास है, जहाँ सरकार यह नहीं कहती कि बेटियों को रियायत दो बल्कि वह कहती है, जो मेहनती हैं, उन्हें उनकी पहचान दो।

सानिया जैसी लड़कियाँ जब अपनी स्कूटी पर सवार होकर शिक्षा की दिशा में अग्रसर होती हैं, तो वे पूरे गाँव, मोहल्ले और समाज की बेटियों के लिए प्रेरणा बन जाती हैं।

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अग्रवाल गर्ल्स कॉलेज में अध्‍ययनरत दो अन्‍य छात्राओं का भी उक्‍त योजना के अन्‍तर्गत चयन कर लिया गया है और आशा है कि उन्‍हें भी आगामी दिनों में स्‍कूटी मिल जायेगी। विगत दिनों इसी कॉलेज की बी. कॉम. चतुर्थ सैमेस्‍टर की छात्रा पूजा को भी ऐसी ही स्‍कूटी सरकार ने भेंट की थी। सानिया नागौरी इसी जून माह में महाराजा गंगासिंह विश्‍वविद्यालय बीकानेर द्वारा घोषित बी.कॉम. फाईनल के परीक्षा परिणाम में शानदार अंक अर्जित करते हुए द्वितीय स्‍थान पर रही थी।

अंत में…

यह स्कूटी सच में केवल दो पहिए नहीं, यह सपनों का इंजन है। यह उस भरोसे का पहिया है जो एक बेटी को खुद पर, अपने भविष्य पर और समाज पर होता है।
सानिया जब स्कूटी पर कॉलेज पहुँची, तो उसके चेहरे की मुस्कान, उसकी आँखों की चमक और कदमों की रफ़्तार यही कह रही थी —

“ये स्कूटी नहीं… मेरी आज़ादी की सवारी है।

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2 thoughts on ““ये स्कूटी नहीं… मेरे सपनों की उड़ान है” मेहनत का इनाम और आत्मनिर्भरता की शुरुआत

    1. Congratulations on your outstanding achievement, it is truly well-deserved. Winning a scooty is a fantastic accomplishment, and I am so proud of your dedication. Your impressive percentage reflects your hard work and commitment to your studies. I wish you continued success in your future endeavors; keep up the great work! This is a remarkable milestone.

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