अब जरूरी है एक नई हरित क्रांति
AGC Times Sri Ganganagar
14 जून 2025 को श्रीगंगानगर ने एक दुर्भाग्यपूर्ण कीर्तिमान हासिल किया—यह दुनिया का सबसे गर्म शहर घोषित हुआ। इस दिन तापमान 50.8 डिग्री सेल्सियस तक पहुँच गया, जो केवल एक मौसम संबंधी आंकड़ा नहीं, बल्कि हमारी पर्यावरणीय लापरवाही और जलवायु परिवर्तन का खुला संकेत था, जिसने पूरे भारत ही नहीं, विश्व का ध्यान इस छोटे से सीमावर्ती जिले की ओर खींचा। यह खबर जितनी चौंकाने वाली है, उतनी ही चिंतन की मांग करती है। गर्म हवाएं, सूखी धरती, तपते खेत और पसीने से तर-बतर नागरिक—श्रीगंगानगर का हर दृश्य मानो हमें चेतावनी दे रहा है कि अब भी अगर हमने कुछ नहीं किया, तो आने वाले वर्षों में हालात और भयावह होंगे।
पर क्या आप जानते हैं कि कभी यही धरती रेगिस्तान हुआ करती थी? और इसे “राजस्थान का अनाज भंडार” बनाने का सपना देखा था महाराजा गंगा सिंह जी ने, जो बीकानेर रियासत के दूरदर्शी शासक थे।
महाराजा गंगा सिंह और नहरों का चमत्कार
यह विडंबना ही है कि यही श्रीगंगानगर कभी रेगिस्तान था, जिसे हरियाली में बदलने का सपना एक दूरदर्शी राजा ने देखा था। बीसवीं सदी की शुरुआत में बीकानेर रियासत के महाराजा गंगा सिंह ने पंजाब की सतलुज नदी से नहरें खींच कर इस क्षेत्र को पानी से सिंचित करने का निर्णय लिया। 1927 में ‘गंगनहर’ परियोजना पूरी हुई, और यह रेगिस्तानी क्षेत्र ‘राजस्थान का पंजाब’ बन गया। इन नहरों ने इस इलाके को हरा-भरा कर दिया, यहाँ की जमीन सोना उगलने लगी और श्रीगंगानगर को “ग्रीन डेजर्ट” कहा जाने लगा। यह भारत के इतिहास में एक हरित क्रांति से पहले की हरित क्रांति थी। इसी ऐतिहासिक प्रयास की बदौलत यहाँ की पहचान, संस्कृति, जनजीवन और अर्थव्यवस्था का स्वरूप ही बदल गया। महाराजा की दूरदृष्टि और परिश्रम ने जिस भूमि को हरा-भरा बनाया, आज उसी भूमि पर लू के थपेड़े और जल संकट की मार है।

गंगनहर के उद्घाटन के अवसर पर, अक्टूबर 1927 में, बीकानेर रियासत के महाराजा गंगा सिंह जी को स्वयं हल चलाते हुए देखा गया — यह दृश्य केवल प्रतीकात्मक नहीं था, बल्कि एक ऐतिहासिक और प्रेरणादायक क्षण था जो यह दर्शाता है कि एक राजा किस प्रकार अपनी प्रजा के सुखद भविष्य के लिए धरती से सीधा जुड़ाव रखता है। इस पावन अवसर पर महामना पंडित मदन मोहन मालवीय भी उपस्थित थे, जो वैदिक मंत्रों का उच्चारण कर इस ऐतिहासिक क्षण को आध्यात्मिक ऊर्जा प्रदान कर रहे थे।
गंगनहर परियोजना के तहत पंजाब की सतलुज नदी से जल लाकर राजस्थान की सूखी धरती में जीवन संचारित किया गया। उस समय महाराजा गंगा सिंह जी ने न केवल इस कार्य का नेतृत्व किया, बल्कि अपने व्यक्तिगत श्रम और संकल्प से यह संदेश दिया कि कृषि, जल और हरियाली ही राज्य की समृद्धि का मूल आधार हैं। यह दृश्य आज भी हमारी स्मृति में एक आदर्श उदाहरण के रूप में जीवित है — जब एक राजा ने खुद खेत जोतकर यह दिखाया कि वह केवल शासक नहीं, बल्कि अपनी भूमि और जनता का सच्चा सेवक है।
वर्तमान संकट: उसी ग्रीन डेजर्ट की पीड़ा
वर्तमान स्थिति में श्रीगंगानगर जैसे क्षेत्र का दुनिया का सबसे गर्म शहर बन जाना केवल भौगोलिक नहीं, बल्कि मानवीय और प्रशासनिक विफलता का भी संकेत है। अनियंत्रित शहरीकरण, हरियाली की कटाई, भूमिगत जल का अत्यधिक दोहन, और बढ़ती कार्बन उत्सर्जन जैसी समस्याओं ने इस इलाके को धीरे-धीरे फिर से रेगिस्तान की ओर धकेलना शुरू कर दिया है। गर्मी में अस्पतालों में मरीजों की भीड़, स्कूलों में बच्चों की अनुपस्थिति और खेतों की सूखी मिट्टी यह दर्शाती है कि केवल AC या पंखे इस समस्या का समाधान नहीं हैं।
अब समय आ गया है कि हम एक नई हरित क्रांति की ओर कदम बढ़ाएं। प्रशासन को चाहिए कि वह ‘ग्रीन श्रीगंगानगर अभियान’ की शुरुआत करे, जिसमें हर वार्ड, गली और स्कूल में अनिवार्य वृक्षारोपण हो, जल संरक्षण योजनाओं को सख्ती से लागू किया जाए, और सौर ऊर्जा को हर सार्वजनिक भवन में अपनाया जाए। साथ ही, शहर के चारों ओर ग्रीन बेल्ट विकसित किए जाएं जो तापमान को नियंत्रित कर सकें।
लेकिन यह लड़ाई केवल प्रशासन की नहीं है। नागरिकों की भूमिका इससे कहीं अधिक अहम है। हमें जल के विवेकपूर्ण उपयोग, गैर-जरूरी बिजली के अपव्यय से बचने, वाहनों के अनियंत्रित उपयोग पर रोक और हर घर में कम से कम एक पौधा लगाने जैसी आदतों को अपनाना होगा। समाज के हर वर्ग—बच्चों, युवाओं, शिक्षकों, किसानों और उद्योगपतियों—को एकजुट होकर पर्यावरण संरक्षण को प्राथमिकता देनी होगी।
इतिहास ने एक बार यह दिखा दिया है कि यदि इच्छा शक्ति हो, तो बंजर धरती को भी हरा किया जा सकता है। महाराजा गंगा सिंह ने यह कर दिखाया था। अब हमारी जिम्मेदारी है कि हम उस ऐतिहासिक हरित दृष्टि को फिर से जीवंत करें और श्रीगंगानगर को फिर से एक पर्यावरणीय आदर्श नगर के रूप में स्थापित करें। यह केवल जलवायु का संकट नहीं है, यह हमारे बच्चों के भविष्य, हमारी मिट्टी की उर्वरता और हमारे जीवन के अस्तित्व का सवाल है। आइए, हम सब मिलकर संकल्प लें कि श्रीगंगानगर को फिर से हरा-भरा बनाएंगे—बिना किसी विलंब के, पूरी जिम्मेदारी के साथ।
“श्रीगंगानगर फिर से हरा होगा—जब हर नागरिक हरियाली के लिए खड़ा होगा।”

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