साकारात्मक दृष्टिकोण के साथ सद्गुणी जीवन जीने की कला है दीक्षा : प्रो राजाराम चोयल

AGC Times Desk, Sriganganagar

“दीक्षा का अर्थ है सद्गुणी जीवन जीने के सकरात्मक दृष्टिकोण के साथ आचार्योँ तथा विद्यार्थोयों द्वारा तप करना |”  उक्त विचार महाराजा गंगासिंह विश्वविधालय, बीकानेर के परीक्षा नियंत्रक तथा पर्यावरणीय विज्ञान के प्रोफेसर डॉ राजाराम चोयल ने व्यक्त किये जो अग्रवाल गर्ल्स कॉलेज द्वारा आयोजित प्रथम दीक्षांत समारोह के अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में बोल रहे थे डॉ. चोयल ने अपने संबोधन में उपस्थित छात्राओं, आचार्यों, अभिभावकों और गणमान्य अतिथियों को जीवन में चार मुख्य सद्गुणों को अपनाने का संदेश दिया। उन्होंने बताया कि एक संतुलित और सफल जीवन जीने के लिए ये चार स्तंभ अत्यंत आवश्यक हैं। पहला सद्गुण है विवादों से बचना, क्योंकि अनावश्यक झगड़े और टकराव न केवल समय और ऊर्जा की बर्बादी करते हैं, बल्कि मानसिक शांति को भी भंग कर देते हैं। व्यक्ति को संयम और विवेक से कार्य करना चाहिए ताकि रिश्तों और वातावरण में सौहार्द बना रहे। दूसरा महत्वपूर्ण गुण है समय प्रबंधन। डॉ. चोयल ने कहा कि समय सबसे मूल्यवान संसाधन है, और यदि छात्र प्रारंभ से ही अपने समय का सही नियोजन करना सीख लें, तो वे जीवन में अनेक चुनौतियों का प्रभावी रूप से सामना कर सकते हैं। तीसरा स्तंभ है तनाव प्रबंधन। आज की प्रतिस्पर्धा भरी दुनिया में मानसिक तनाव एक सामान्य बात हो गई है, परंतु इसे नज़रअंदाज़ करना खतरनाक हो सकता है। तनाव को दूर करने के लिए योग, ध्यान, संवाद और संतुलित जीवनशैली को अपनाना जरूरी है। चौथा और अंतिम सद्गुण है कि दूसरों की सहायता करें, लेकिन इस प्रक्रिया में स्वयं को किसी भी प्रकार की क्षति न पहुँचाएं। मदद करना मानवीय गुण है, लेकिन अपनी सीमाओं का ध्यान रखते हुए संतुलन बनाना भी उतना ही आवश्यक है। इन चार मूल्यों को अपनाकर व्यक्ति न केवल अपने जीवन को सुखी और सफल बना सकता है, बल्कि समाज में एक प्रेरणादायक उदाहरण भी स्थापित कर सकता है। डॉ. चोयल ने अपने प्रेरणादायक वक्तव्य में छात्राओं से विशेष रूप से आह्वान किया कि वे स्वयं को एक सजग, जिम्मेदार और श्रेष्ठ नागरिक के रूप में तैयार करें, ताकि वे देश की उन्नति में सक्रिय भूमिका निभा सकें। उन्होंने स्पष्ट किया कि एक अच्छा नागरिक केवल कानून का पालन करने वाला नहीं होता, बल्कि वह ऐसा व्यक्ति होता है जो समाज के प्रति संवेदनशील हो, अपने कर्तव्यों को समझे और राष्ट्र के विकास में सकारात्मक योगदान दे। आज की छात्राएँ कल की नीति-निर्माता, शिक्षक, डॉक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक और सामाजिक नेतृत्वकर्ता होंगी। इसलिए उनका शिक्षा के साथ-साथ नैतिक और सामाजिक रूप से भी परिपक्व होना आवश्यक है। इसी भावना के साथ डॉ. चोयल ने अपने तीन प्रमुख मिशनों  विकसित भारत 2047, विकसित राजस्थान 2047, और विकसित थार डेजर्ट 2047  को दोहराया। उन्होंने बताया कि यह केवल एक संकल्प या सपना नहीं है, बल्कि एक दिशा और कार्य योजना है जिसे हर नागरिक के सहयोग से ही साकार किया जा सकता है।

विकसित भारत 2047 का तात्पर्य उस भारत की कल्पना से है, जो स्वतंत्रता के 100 वर्ष पूर्ण होने तक आत्मनिर्भर, प्रगतिशील, तकनीकी रूप से सशक्त, आर्थिक रूप से मजबूत और सामाजिक रूप से समरस होगा। यह मिशन छात्रों, शिक्षकों, नीति-निर्माताओं और नागरिकों सभी से योगदान की अपेक्षा करता है। विकसित राजस्थान 2047 राज्य के समग्र विकास की परिकल्पना है  जिसमें शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, महिला सशक्तिकरण, पर्यावरण संतुलन, तकनीकी नवाचार और सांस्कृतिक संरक्षण जैसे क्षेत्रों में उल्लेखनीय प्रगति की जाए। डॉ. चोयल ने कहा कि राजस्थान के पास अपार संभावनाएँ हैं, और यदि युवा पीढ़ी संकल्पित हो जाए, तो राज्य को विकसित श्रेणी में लाना असंभव नहीं। अंततः, विकसित थार डेजर्ट 2047 की बात करते हुए उन्होंने रेगिस्तान जैसे सीमित संसाधनों वाले क्षेत्र को भी विकास की मुख्यधारा से जोड़ने की आवश्यकता बताई। उन्होंने कहा कि यह क्षेत्र न केवल ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध है, बल्कि यदि तकनीकी नवाचार, जल प्रबंधन, सौर ऊर्जा और सतत जीवनशैली को बढ़ावा दिया जाए तो थार क्षेत्र भी पर्यावरण के अनुकूल विकास का उदाहरण बन सकता है। इस प्रकार, डॉ. चोयल का संदेश केवल प्रेरक नहीं था, बल्कि एक दूरदर्शी दृष्टिकोण भी था, जिसमें उन्होंने शिक्षा, नागरिक जिम्मेदारी और राष्ट्र निर्माण के गहरे संबंध को उजागर किया। उनका यह वक्तव्य छात्राओं को आत्मचिंतन के साथ-साथ कर्म की दिशा में अग्रसर होने के लिए प्रेरित करता है।

कार्यक्रम का समापन अत्यंत गरिमामयी और प्रेरणादायक वातावरण में हुआ। इस अवसर पर डॉ. राजाराम चोयल ने मंच से सभी छात्राओं को डिग्री धारण करने की शपथ दिलवाई। यह शपथ केवल एक औपचारिक प्रक्रिया नहीं थी, बल्कि एक आंतरिक संकल्प थी — जिसमें छात्राओं ने यह प्रतिज्ञा ली कि वे अपने ज्ञान का उपयोग समाज, राष्ट्र और मानवता के हित में करेंगी। डॉ. चोयल ने उन्हें स्मरण दिलाया कि डिग्री केवल एक प्रमाण-पत्र नहीं, बल्कि एक जवाबदेही है, जो शिक्षा के माध्यम से अर्जित की जाती है और जीवनभर उसका अनुसरण किया जाता है।

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इसके पश्चात शैक्षणिक सत्र 2021-22 एवं 2022-23 की छात्राओं को विधिवत डिग्रियाँ वितरित की गईं। छात्राएँ अपने शैक्षणिक सफर के इस महत्वपूर्ण पड़ाव को पूर्ण करके गर्व और उत्साह से मंच पर आईं। यह क्षण न केवल उनके लिए, बल्कि उनके अभिभावकों और शिक्षकों के लिए भी अत्यंत गौरवपूर्ण था। छात्राओं की आँखों में भावी जीवन के सपनों की चमक और कृतज्ञता की झलक साफ़ देखी जा सकती थी।

इस अवसर पर संस्थान के मानद संयुक्त निदेशक डॉ. ओ. पी. गुप्ता, संयुक्त निदेशक डॉ. एस. के. मंगल, तथा ट्रस्ट सचिव  श्री पियूष गिदरा ने बुके भेंट कर डॉ. चोयल का सम्मानपूर्वक स्वागत किया। यह स्वागत केवल एक अतिथि के रूप में नहीं था, बल्कि एक विचारशील मार्गदर्शक के रूप में उनकी उपस्थिति का अभिनंदन था, जिनके विचार छात्राओं को दिशा और प्रेरणा देते हैं।

कार्यक्रम के अंत में संस्थान के प्राचार्य डॉ. अरुण वत्स ने मंच पर आकर डॉ. चोयल का इस विशेष अवसर पर समय देने और छात्राओं को प्रेरित करने के लिए हृदयपूर्वक आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि ऐसे अवसर संस्थान की पहचान को सशक्त बनाते हैं और छात्राओं के मन में शिक्षा के प्रति सम्मान और उद्देश्य की भावना को दृढ़ करते हैं।

समारोह की संपूर्ण प्रस्तुति ने यह सिद्ध कर दिया कि शिक्षा केवल प्रमाण-पत्र देने की प्रक्रिया नहीं है, बल्कि यह एक जीवनदायिनी शक्ति है, जो विद्यार्थियों को समाज में बदलाव का वाहक बनने के लिए सक्षम बनाती है।

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