पुस्तकें – मानव की सच्ची मित्र

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एक अच्छा पुस्तकालय आत्मा का अस्पताल होता है।” – यह कथन रोमन दार्शनिक सिसेरो का है, जो यह स्पष्ट करता है कि पुस्तकें केवल ज्ञान का स्रोत नहीं, बल्कि आत्मा की संजीवनी होती हैं। जीवन में कई रिश्ते बनते हैं और समय के साथ बदलते हैं, पर एक रिश्ता ऐसा होता है जो न वक्त का मोहताज है और न स्वार्थ का वह रिश्ता है मनुष्य और पुस्तक का। जब सब साथ छोड़ देते हैं, तब भी एक किताब मौन, फिर भी जीवंत रूप में हमारे साथ होती है बिना किसी अपेक्षा के।

पुस्तकें केवल जानकारियाँ नहीं देतीं, वे हमें सोचने का तरीका, महसूस करने की संवेदना, और जीवन को देखने की एक गहरी दृष्टि प्रदान करती हैं। वे न्याय नहीं करतीं, केवल समझने का अवसर देती हैं। जिस तरह भगवद गीता हमें कर्म की राह सिखाती है, रामायण मर्यादा और कर्तव्यबोध का आदर्श प्रस्तुत करती है, और कबीर व तुलसीदास की वाणी लोक और शास्त्र का सुंदर संगम रचती है वैसे ही हर पुस्तक अपने समय की सच्चाई और मानवीय मूल्यों का प्रतिबिंब होती है।

आज की डिजिटल दुनिया में, जब ध्यान भटकाने वाले साधनों की भरमार है, पुस्तकें ध्यान केंद्रित करना, आत्ममंथन करना और स्वयं के भीतर झांकना सिखाती हैं। वे हमें एकांत में शक्ति देती हैं और भीड़ में विवेक।

पुस्तकें न केवल मित्र हैं, बल्कि वे विश्व की खिड़की भी हैं हम भले ही भौगोलिक दूरियाँ पार न कर सकें, लेकिन किताबें उन सीमाओं को मिटा देती हैं। जब हम विलियम शेक्सपियर के नाटकों को पढ़ते हैं, तो 16वीं सदी के इंग्लैंड की राजनीति, प्रेम, त्रासदी और मानवीय कमजोरी को महसूस कर सकते हैं। मैक्सिम गोर्की की रचनाएं हमें क्रांति-पूर्व रूस के जन-जीवन की झलक देती हैं। लियो टॉल्स्टॉय की ‘War and Peace’ या ‘Anna Karenina’ मानवीय मनोविज्ञान की गहराई तक ले जाती है।

इसी प्रकार, गैब्रियल गार्सिया मार्केज़ की ‘One Hundred Years of Solitude’, Ernest Hemingway, George Orwell, और खलील जिब्रान जैसे लेखक, न केवल साहित्य रचते हैं, बल्कि मनुष्यता को अनुभव कराते हैं।

भारतीय साहित्य जगत में रवीन्द्रनाथ ठाकुर, मुंशी प्रेमचंद, महादेवी वर्मा, भीष्म साहनी, महाश्वेता देवी जैसे लेखक केवल लेखक नहीं, समाज की आत्मा के अनुवादक हैं। उनके पात्र, घटनाएँ और संवाद आज भी हमें विचारशील बनाते हैं।

इनके साथ-साथ, कुछ लेखक ऐसे हैं जिन्होंने आत्म-विकास, प्रेरणा और मनोविज्ञान के क्षेत्र में क्रांति ला दी —
Dale Carnegie की ‘How to Win Friends and Influence People’ और ‘How to Stop Worrying and Start Living’ जैसी किताबें हमें आत्मविश्वास, संवाद कौशल और सकारात्मक सोच सिखाती हैं। Osho की आध्यात्मिक पुस्तकें जैसे ‘‘एक ओंकार सतनाम’ या ‘Courage: The Joy of Living Dangerously’ जीवन को गहराई से देखने की प्रेरणा देती हैं। वे केवल धर्म नहीं, बल्कि चेतना के स्तर पर यात्रा कराते हैं। Sigmund Freud, मनोविज्ञान के जनक माने जाते हैं, जिनकी पुस्तक ‘The Interpretation of Dreams’ या ‘Civilization and Its Discontents’ मन की गहराइयों में उतरने का अवसर देती हैं। उनके विचार हमारे अवचेतन मस्तिष्क को समझने में मदद करते हैं।

महापुरुषों का जीवन भी यह दर्शाता है कि पुस्तकों ने उनके व्यक्तित्व निर्माण में अहम भूमिका निभाई। डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम कहा करते थे, “Books are my lifelong friends.” महात्मा गांधी की आत्मकथा ‘सत्य के साथ मेरे प्रयोग’ आज भी सत्य, आत्मबल और आत्मचिंतन की प्रेरणा देती है। स्वामी विवेकानंद युवाओं से कहते थे — “उठो, जागो और जब तक लक्ष्य की प्राप्ति न हो, रुको मत।” उनका यह विचार आज करोड़ों युवाओं की चेतना का हिस्सा है।

आज जब सूचना की अधिकता है, लेकिन समझ और संयम की कमी है – तब पुस्तकें ही हमें उस गहराई से जोड़ती हैं, जो ज्ञान को विवेक में बदलती हैं। ये किताबें ही हैं जो हमें कल्पना की उड़ान, विवेक का मार्ग और समझदारी की ज़मीन देती हैं।

कुछ अमूल्य पुस्तकें जो हर व्यक्ति को पढ़नी चाहिए:

  • ‘भगवद गीता’ – आत्मज्ञान का सर्वोच्च ग्रंथ
  • ‘Wings of Fire’ – डॉ. कलाम की प्रेरणादायक आत्मकथा
  • ‘How to Win Friends and Influence People’ – Dale Carnegie
  • ‘Ikigai’ – जापानी जीवनदर्शन पर आधारित उत्कृष्ट पुस्तक
  • ‘Interpreter of Dreams’ – Sigmund Freud
  • ‘प्रीतम छवि नैनन बसी’ – ओशो
  • ‘गोदान’ – प्रेमचंद
  • ‘गीतांजलि’ – रवीन्द्रनाथ टैगोर
  • ‘The compound effect’-Darren hardy

पुस्तकें अकेलेपन की सच्ची साथी होती हैं। जब कोई नहीं होता, एक किताब होती है अपने शब्दों से, अपने विचारों से, और अपने मौन संवाद से। यही कारण है कि किताबें केवल पढ़ने की चीज़ नहीं हैं, वे जीवन की सहयात्री होती हैं।

आइए, हम भी इस युग में फिर से पुस्तकों से मित्रता करें एक ऐसी मित्रता जो हमें स्वयं से जोड़े, समाज से जोड़े और मानवता से जोड़े।

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