AGC Times Sriganganagar, 11 July 2025
जनाधिक्य देश के लिए वरदान भी है और अभिशाप भी’’ – डॉ. ओ.पी. गुप्ता‘‘
विश्व जनसंख्या दिवस के अवसर पर अग्रवाल गर्ल्स कॉलेज, श्रीगंगानगर में इस विषय पर एक सेमिनार और पोस्टर प्रतियोगिता का आयोजन किया गया।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि कॉलेज के मानद निदेशक डॉ. ओ. पी. गुप्ता ने सेमिनार में मौजूद छात्राओं, संकाय सदस्यों एवं प्राध्यापकों को सम्बोधित करते हुए अपने व्यक्तव्य में कहा, ‘‘जनाधिक्य देश के लिए वरदान भी है और अभिशाप भी। यह इस बात पर निर्भर करता है कि देश के आर्थिक संसाधन कितने हैं और उनका किस कदर उपयोग किया जाता है।’’ भारत जैसे विकासशील देशों में जनसंख्या का विषय वर्षों से बहस और चिंता का केंद्र रहा है। जनसंख्या जहाँ एक ओर मानव संसाधन के रूप में देश की ताकत बन सकती है, वहीं दूसरी ओर यदि यह अनियंत्रित हो जाए तो सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय संकट का कारण भी बन सकती है। इसलिए जनाधिक्य को समझना मात्र संख्या की दृष्टि से नहीं, बल्कि उसके सामाजिक और आर्थिक प्रभावों के परिप्रेक्ष्य में आवश्यक है।
डॉ. ओ.पी. गुप्ता ने आगे कहा यदि जनसंख्या को सही दिशा में विकसित किया जाए, तो यह राष्ट्र की प्रगति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। भारत की जनसंख्या का एक बड़ा भाग युवाओं का है, जिसे यदि उचित शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाएं और रोजगार उपलब्ध हों, तो वह देश को न केवल आत्मनिर्भर बना सकता है, बल्कि उसे वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी भी बना सकता है। एक सशक्त और शिक्षित जनसंख्या देश के उत्पादक क्षेत्रों में श्रमबल प्रदान करती है, जिससे उद्योग, सेवा और कृषि जैसे क्षेत्रों में तीव्र विकास संभव होता है। इसके अतिरिक्त, बड़ी जनसंख्या एक विशाल उपभोक्ता बाजार का निर्माण करती है, जो बहुराष्ट्रीय कंपनियों को आकर्षित करता है और देश की आंतरिक अर्थव्यवस्था को मज़बूत करता है।

डॉ. गुप्ता ने जनाधिक्य के दूसरे पहलू पर प्रकाश डालते हुए आगे कहा कि दूसरी ओर, यही जनसंख्या यदि नियंत्रण से बाहर हो जाए, तो यह एक गहरी सामाजिक और आर्थिक चुनौती बन जाती है। संसाधनों की सीमितता के कारण बढ़ती आबादी पर दबाव पड़ता है, जिससे जल, भोजन, आवास, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सेवाओं की गुणवत्ता प्रभावित होती है। इसके परिणामस्वरूप गरीबी, कुपोषण, बेरोजगारी और अशिक्षा जैसी समस्याएं गहराने लगती हैं। बड़े शहरों में अव्यवस्थित शहरीकरण, ट्रैफिक जाम, जल संकट और प्रदूषण जैसी समस्याएं प्रत्यक्ष रूप से अत्यधिक जनसंख्या की देन हैं। जनाधिक्य पर्यावरणीय असंतुलन को भी जन्म देता है, जिससे जलवायु परिवर्तन, वन क्षेत्र की कटौती और जैव विविधता का नुकसान जैसे गंभीर परिणाम सामने आते हैं।
इस प्रकार, जनाधिक्य अपने आप में न तो पूर्ण वरदान है और न ही पूरी तरह से अभिशाप। यह इस बात पर निर्भर करता है कि सरकार और समाज किस प्रकार से जनसंख्या को संसाधन के रूप में विकसित करने का प्रयास करते हैं। यदि शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और महिला सशक्तिकरण जैसे क्षेत्रों में योजनाबद्ध निवेश किया जाए, तो यह जनसंख्या ही देश को प्रगति की नई ऊँचाइयों तक पहुँचा सकती है। इसके विपरीत यदि इसे उपेक्षित छोड़ दिया गया, तो यही जनसंख्या गरीबी, अशिक्षा और सामाजिक असमानता का कारण बन सकती है।
अतः आवश्यकता इस बात की है कि हम जनसंख्या को संख्या मात्र न समझें, बल्कि उसे एक जीवंत संसाधन के रूप में देखें और उसे दिशा देने के लिए ठोस नीतियाँ बनाएं। तभी हम इस विरोधाभास को साध सकते हैं कि कैसे जनाधिक्य एक साथ वरदान भी है और अभिशाप भी, लेकिन उसे क्या बनाना है, यह देश के नेतृत्व और समाज की दृष्टि पर निर्भर करता है। डॉ. गुप्ता के इस सारगर्भित संभाषण का सभी उपस्थित लोगों द्वारा तालियों की करतल ध्वनि के साथ उत्साहपूर्वक स्वागत किया गया।
तत्पश्चात कला संकाय की छात्राओं सुश्री ध्रुविका और सुश्री निर्मला ने सेमिनार में छात्रा प्रतिनिधियों के रूप में भाग लेते हुए “जनाधिक्य: वरदान या अभिशाप” विषय पर अपने विचार अत्यंत प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किए। दोनों छात्राओं ने इस विषय से जुड़े सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय पहलुओं पर विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण भी रखा। उन्होंने बताया कि किस प्रकार अत्यधिक जनसंख्या के कारण शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और आवास जैसी बुनियादी आवश्यकताओं पर दबाव बढ़ता है, जिससे समाज में असंतुलन उत्पन्न होता है।
ध्रुविका और निर्मला ने अपने भाषणों में यह भी स्पष्ट किया कि जनसंख्या अपने आप में कोई समस्या नहीं है, बल्कि समस्या उसके प्रबंधन की कमी है। यदि इस विशाल जनसमूह को सही दिशा, संसाधन और अवसर दिए जाएं, तो यही जनसंख्या राष्ट्र की प्रगति का आधार बन सकती है। उन्होंने युवाओं की भूमिका को रेखांकित करते हुए कहा कि जागरूक और शिक्षित युवा ही देश को इस चुनौती से निपटने में सबसे बड़ी भूमिका निभा सकते हैं। उनकी संभाषण में विषय की गहराई, तर्क और समाधान तीनों का संतुलित मिश्रण देखने को मिला, जिसे उपस्थित छात्राओं और संकाय सदस्यों ने मुक्त कंठ से सराहना की |
कॉलेज के प्राचार्य डॉ. अरुण वत्स ने अपने संबोधन में जनसंख्या नियंत्रण और उसके नियोजन की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि किसी भी देश की दिशा और विकास की गति इस बात पर निर्भर करती है कि वहां की जनसंख्या का प्रबंधन कितना प्रभावी ढंग से किया गया है। यदि जनसंख्या का नियोजन विवेकपूर्ण ढंग से किया जाए तो वह देश की प्रगति में सहायक बनती है, लेकिन यदि इसे उपेक्षित छोड़ दिया गया तो यही जनसंख्या संसाधनों पर बोझ बन जाती है। उन्होंने बताया कि शिक्षा, स्वास्थ्य, महिला सशक्तिकरण और रोजगार सृजन जैसे क्षेत्रों में सतत नीति और क्रियान्वयन के ज़रिये ही जनसंख्या को अवसर में बदला जा सकता है।
डॉ. वत्स ने छात्राओं को विशेष रूप से संबोधित करते हुए कहा कि वे न केवल वर्तमान की शिक्षार्थी हैं, बल्कि भविष्य की जागरूक नीति-निर्मात्री भी हैं। आज की छात्राएं यदि सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय मुद्दों की गहराई को समझेंगी और उसमें सक्रिय भूमिका निभाएँगी, तो कल वे समाज को एक सकारात्मक दिशा दे सकती हैं। उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि जनसंख्या से जुड़े विषय केवल आंकड़ों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि वे जीवन की गुणवत्ता, संसाधनों की उपलब्धता और सामाजिक संतुलन से गहराई से जुड़े हुए हैं और इन सभी मुद्दों पर जागरूकता ही वास्तविक बदलाव का आधार बन सकती है।
सेमिनार के बाद ‘जनसंख्या विस्फोट’ विषय पर एक पोस्टर बनाओ प्रतियोगिता का आयोजन किया गया जिसमें छात्राओं ने अत्यंत रचनात्मक और सामाजिक संदेशों से युक्त पोस्टर प्रस्तुत किए। कार्यक्रम का संचालन इतिहास विभाग के सहायक आचार्य श्री सीताराम जी ने कुशलतापूर्वक किया।
इस पूरे आयोजन ने छात्राओं को न केवल जनसंख्या के सामाजिक प्रभावों को समझने का अवसर दिया, बल्कि उन्हें विचारशील नागरिक बनने की प्रेरणा भी दी।
AGC Times परिवार इस प्रयास की सराहना करता है और सभी आयोजकों को बधाई देता है।

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