लड़कियों का पढ़ना क्यों ज़रूरी है?

लड़कियों का पढ़ना

Dr. Satinder Maken

इस लेख का उद्देश्य शिक्षा के गूढ़ आयामों पर विचार विमर्श करना है विशेषकर तब, जब प्रश्न स्त्री और समाज की चेतना का हो।

“लड़कियों का पढ़ना ऐसा है जैसे एक सभ्यता के उत्थान की अनिवार्यता

“जब एक पुरुष शिक्षित होता है, तो एक व्यक्ति शिक्षित होता है। जब एक स्त्री शिक्षित होती है, तो एक समाज शिक्षित होता है।” यह वाक्य अब किसी उद्घोषणा से कहीं अधिक एक ऐतिहासिक सत्य बन चुका है सत्य जो अनुभवजन्य है, सांस्कृतिक रूप से पुष्ट है, और दार्शनिक दृष्टि से अपरिहार्य है।

ज्ञान का स्त्रीत्व: परंपरा बनाम बोध

भारतीय सभ्यता में ज्ञान का प्रतीक ‘सरस्वती’ को माना गया एक स्त्री। पर विडंबना देखिए, जिनके हाथों में वीणा और वेद हैं, उसी संस्कृति ने अपने ही अवतारों को सदियों तक अंधकार में रखा। स्त्रियों के पढ़ने का प्रश्न कोई सामाजिक सुविधा नहीं, बल्कि एक अस्तित्व की अनिवार्यता है।

जब हम ‘लड़कियों के पढ़ने’ की बात करते हैं, तो यह केवल अक्षर ज्ञान नहीं है यह उस संरचना को पुनर्परिभाषित करने की बात है जिसमें स्त्रियाँ केवल सहन करने की नहीं, सोचने की पात्र हैं।

लड़कियों का पढ़ना

ज्ञान और स्त्री मुक्ति: एक गूढ़ संबंध

19वीं सदी के बंगाल की एक घटना लें। सावित्रीबाई फुले जब पहली बार लड़कियों को पढ़ाने सड़क पर निकलीं, तो उनके ऊपर गोबर और पत्थर फेंके गए। लेकिन वह रुकी नहींं। क्यों? क्योंकि वे जानती थीं स्त्री के लिए शिक्षा कोई विशेषाधिकार नहीं, एक प्रतिरोध है। एक आत्मदावे की भाषा।

आज भी जब हम अफगानिस्तान की ज़ारिफ़ा घफ़ारी को देखते हैं जिन्होंने तालिबानी दमन के बीच खुद को शिक्षित कर, अफगानिस्तान की पहली महिला मेयर बन देश के चेहरे को बदल दिया तो समझ आता है कि स्त्रियों का पढ़ना सत्ता की पुनःपरिभाषा है।

साहित्य और शिक्षा: एक स्त्री विमर्श

प्रसिद्ध फ्रांसीसी लेखिका सिमोन द बोउवार ने लिखा था, “One is not born, but rather becomes, a woman.” यह ‘बनना’ शिक्षा के बिना असंभव है। लड़कियों का पढ़ना उस मानसिक औपनिवेशिकता को तोड़ता है जो उन्हें ‘स्त्री’ की परिभाषा में जकड़े रखता है।

हिंदी की प्रसिद्ध लेखिका महादेवी वर्मा की आत्मकथा “अतीत के चलचित्र” में शिक्षा को स्त्री मुक्ति का प्रथम सोपान बताया गया है। उनकी माँ ने, रूढ़ियों को तोड़ते हुए, उन्हें हिंदी, संस्कृत और अंग्रेज़ी पढ़ाई और वही शिक्षा उन्हें छायावाद की मीरा बना गई।

आर्थिक या सामाजिक नहीं, ये अस्तित्व का प्रश्न है

हम अक्सर लड़कियों की शिक्षा को ‘रोज़गार’, ‘स्वावलंबन’, या ‘समाज सुधार’ जैसे सामान्य सामाजिक उद्देश्यों से जोड़ते हैं पर यह प्रश्न कहीं गहरे, और अधिक दार्शनिक है।

जब एक लड़की पढ़ती है, वह केवल अक्षर नहीं पढ़ती वह अपने अस्तित्व को फिर से गढ़ती है। वह अपने नाम को, अपने स्वप्नों को, अपने निर्णयों को एक अर्थ देती है और यह अर्थ ही है जो मानवता को इतिहास में धकेलता है।

जीवित कथा: मलाला और एक गोली का उत्तर

मलाला यूसुफज़ई, पाकिस्तान के स्वात घाटी की वह किशोरी जिसने तालिबानी शासन के विरुद्ध केवल पढ़ने की जिद की थी, उसे एक गोली का उत्तर मिला। पर उस एक गोली के बदले, मलाला ने जो दिया वह नोबेल शांति पुरस्कार नहीं, बल्कि यह सत्य था कि एक शिक्षित लड़की बंदूक से अधिक शक्तिशाली हो सकती है।

उपसंहार: स्त्री की चुप्पी नहीं, चेतना चाहिए

आज की दुनिया को लड़कियों की शिक्षा केवल इसलिए नहीं चाहिए कि वे नौकरी कर सकें, या घर का सहयोग कर सकें — बल्कि इसलिए चाहिए कि वे विचार कर सकें। स्त्रियों के विचारों से रहित सभ्यता, नश्वर होती है।

जैसे नदी को रोका नहीं जा सकता, वैसे ही स्त्रियों की शिक्षा को अब कोई नहीं रोक सकता। शिक्षा स्त्री को नारीत्व नहीं सिखाती, बल्कि मानवता में उसकी पूर्ण भागीदारी का मार्ग प्रशस्त करती है।

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4 thoughts on “लड़कियों का पढ़ना क्यों ज़रूरी है?

  1. Very good article on girls education❤❤
    Education is the key to achieve success it’s boost the mind and learn us how to survive in life.

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