International Yoga Day के अवसर पर विशेष लेख
Mrs Jaspreet Kaur, Assistant Professor, Agarwal Girls College, Sri Ganganagar
भारत की प्राचीनतम विद्या एवं दर्शन परंपरा में योग एक अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। योग को केवल शारीरिक व्यायाम के रूप में देखना इसकी सीमित समझ होगी। यह आत्म-शुद्धि, मानसिक अनुशासन और आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग है। योग की इस गूढ़ पद्धति को महर्षि पतंजलि ने सुव्यवस्थित और वैज्ञानिक रूप से प्रस्तुत किया, जिसे हम आज “पतंजलि योगसूत्र” के नाम से जानते हैं। यह ग्रंथ योग दर्शन का मूल आधार है और आज भी मानव जीवन, विशेषकर विद्यार्थियों के लिए अत्यंत उपयोगी और मार्गदर्शक है।

पतंजलि योगसूत्र: एक परिचय
महर्षि पतंजलि द्वारा रचित योगसूत्र संस्कृत भाषा में एक संक्षिप्त किन्तु गहन ग्रंथ है, जिसमें कुल 195 सूत्र (वाक्य/सूत्रवाक्य) हैं। इस ग्रंथ में योग को मन और शरीर के नियंत्रण, आत्मानुशासन तथा चेतना की उच्च अवस्था तक पहुँचने का साधन बताया गया है।
पतंजलि ने योग की परिभाषा इस प्रकार दी है:
“योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः”
अर्थात् योग मन की वृत्तियों (चंचलताओं) को नियंत्रित करने की प्रक्रिया है।
अष्टांग योग: योग का आठ अंगों वाला मार्ग
अष्टांग योग का शाब्दिक अर्थ है — आठ अंगों वाला योग। महर्षि पतंजलि ने अपने योगसूत्रों में आत्म-उन्नति, मानसिक शांति और मोक्ष (कैवल्य) की प्राप्ति के लिए योग को आठ सोपानों (steps) में विभाजित किया है। ये आठ अंग व्यक्तित्व के सभी स्तरों — शारीरिक, मानसिक, नैतिक और आत्मिक — का शुद्धिकरण करते हैं।
1. यम (Yama) – सामाजिक आचरण के नियम
यम वे नैतिक अनुशासन हैं जो व्यक्ति को समाज में संतुलित, संयमी और जिम्मेदार बनाते हैं। ये पाँच होते हैं:
- अहिंसा (Non-violence): किसी को विचार, वाणी या कर्म से हानि न पहुंचाना
- सत्य (Truth): ईमानदारी और सत्य का पालन
- अस्तेय (Non-stealing): किसी का कुछ भी बिना अनुमति न लेना
- ब्रह्मचर्य (Celibacy/Moderation): इच्छाओं पर नियंत्रण और संयम
- अपरिग्रह (Non-possessiveness): लोभ से मुक्ति, केवल आवश्यक वस्तुओं का संग्रह
विद्यार्थियों के लिए: ये यम आत्म-नियंत्रण, ईमानदारी, और संयम की शिक्षा देते हैं, जो चरित्र निर्माण में सहायक होते हैं।
2. नियम (Niyama) – आत्मअनुशासन के नियम
नियम वे आदर्श हैं जिन्हें व्यक्ति को स्वयं के जीवन में अपनाना होता है:
- शौच (Purity): शरीर और मन की स्वच्छता
- संतोष (Contentment): जो है, उसमें संतुष्ट रहना
- तप (Discipline): कठोर परिश्रम, साधना और नियमितता
- स्वाध्याय (Self-study): धार्मिक/आत्मिक ग्रंथों और स्वयं का अध्ययन
- ईश्वर प्रणिधान (Surrender to God): ईश्वर में विश्वास और समर्पण
विद्यार्थियों के लिए: ये नियम एक अनुशासित जीवन शैली, सकारात्मक सोच और आत्मविश्लेषण की भावना को बढ़ावा देते हैं।
3. आसन (Asana) – शारीरिक स्थिरता
आसन का अर्थ है – ऐसा स्थिर, सुखद और सहज शारीरिक मुद्रा जिसमें लंबे समय तक बैठा जा सके। यह शरीर को साधना के योग्य बनाता है।
विद्यार्थियों के लिए: आसन अभ्यास से शरीर लचीला, स्वस्थ और ऊर्जावान बनता है; थकान कम होती है और ध्यान में आसानी होती है।
4. प्राणायाम (Pranayama) – श्वास का नियंत्रण
‘प्राण’ का अर्थ है जीवनशक्ति, और ‘आयाम’ का अर्थ है नियंत्रण। प्राणायाम में श्वास के आने-जाने को नियंत्रित किया जाता है। यह शरीर और मन के बीच की कड़ी है।
विद्यार्थियों के लिए: यह अभ्यास मानसिक स्पष्टता, तनाव प्रबंधन और एकाग्रता को बढ़ाता है।
5. प्रत्याहार (Pratyahara) – इंद्रिय संयम
प्रत्याहार का अर्थ है इंद्रियों को बाह्य विषयों से हटाकर अंदर की ओर मोड़ना। यह इंद्रिय-नियंत्रण की प्रक्रिया है।
विद्यार्थियों के लिए: यह अभ्यास ध्यान भटकने से रोकता है और एकाग्रता को बढ़ाता है।
6. धारणा (Dharana) – एकाग्रता
धारणा का अर्थ है किसी एक विषय/वस्तु पर मन को स्थिर करना। यह ध्यान की पूर्वावस्था है।
विद्यार्थियों के लिए: पढ़ाई में मन को एक विषय पर केंद्रित रखने में यह अत्यंत सहायक है।
7. ध्यान (Dhyana) – ध्यान अवस्था
ध्यान में मन एक ही विषय/वस्तु पर लगातार प्रवाहित होता है। यह गहन एकाग्रता की स्थिति है।
विद्यार्थियों के लिए: ध्यान से आत्म-निरीक्षण, स्मरण शक्ति और रचनात्मकता में वृद्धि होती है।
8. समाधि (Samadhi) –
आत्मा से एकत्वसमाधि योग का अंतिम चरण है, जिसमें साधक स्वयं की सीमित पहचान से ऊपर उठकर ब्रह्म से एकाकार हो जाता है। यह पूर्ण आत्मिक शांति की अवस्था है।
विद्यार्थियों के लिए: यद्यपि यह अत्यंत उच्च अवस्था है, परन्तु इसके छोटे अनुभव भी मन को अत्यधिक शांति और स्पष्टता प्रदान करते हैं।

विद्यार्थियों के जीवन में योगसूत्र की उपयोगिता
आज के विद्यार्थी जीवन में अनेक प्रकार की चुनौतियाँ हैं – परीक्षा का दबाव, प्रतियोगिता, डिजिटल व्याकुलता, मानसिक तनाव और आत्मविश्वास की कमी। ऐसे में पतंजलि योगसूत्र के सिद्धांत उन्हें संतुलन, अनुशासन और मानसिक शांति की ओर ले जा सकते हैं।
1. मानसिक एकाग्रता और ध्यान:
ध्यान (meditation) और धारणा के अभ्यास से विद्यार्थी अपनी एकाग्रता बढ़ा सकते हैं। यह अभ्यास स्मरण शक्ति को भी सुदृढ़ करता है, जिससे अध्ययन अधिक प्रभावी होता है।
2. अनुशासन और चरित्र निर्माण:
यम और नियम के पालन से विद्यार्थी न केवल आत्मानुशासन में ढलते हैं, बल्कि एक नैतिक और संतुलित चरित्र का विकास करते हैं। यह उनके दीर्घकालिक जीवन और करियर के लिए भी लाभकारी होता है।
3. तनाव प्रबंधन:
प्राणायाम और ध्यान के माध्यम से मानसिक अशांति और तनाव को नियंत्रित किया जा सकता है। यह विशेष रूप से परीक्षा काल में अत्यंत लाभकारी सिद्ध होता है।
4. शारीरिक स्वास्थ्य:
आसन अभ्यास से शारीरिक लचीलापन, स्फूर्ति और सहनशीलता में वृद्धि होती है। स्वस्थ शरीर एक शांत और केंद्रित मन का आधार बनता है।
5. सकारात्मक सोच और आत्मविश्वास:
पतंजलि योगसूत्र का अभ्यास व्यक्ति को स्वयं के प्रति जागरूक बनाता है और आत्मविश्वास को बढ़ाता है। विद्यार्थी जीवन में यह आत्मबल उन्हें चुनौतियों का सामना करने में सक्षम बनाता है।
समकालीन शिक्षा प्रणाली में योगसूत्र की प्रासंगिकता
आज जब शिक्षा केवल अंक प्राप्ति तक सीमित होती जा रही है, वहां पतंजलि का योगदर्शन विद्यार्थियों को समग्र विकास की ओर प्रेरित करता है। भारत सरकार ने नई शिक्षा नीति में योग और नैतिक शिक्षा को स्थान दिया है, जो एक संतुलित शिक्षा पद्धति की ओर संकेत करता है।
अगर विद्यालय और महाविद्यालय स्तर पर अष्टांग योग को दैनिक अभ्यास का हिस्सा बनाया जाए, तो विद्यार्थी न केवल कुशल छात्र बनेंगे बल्कि अच्छे नागरिक भी बन सकेंगे।
पतंजलि योगसूत्र केवल आध्यात्मिक साधना का माध्यम नहीं है, बल्कि यह विद्यार्थियों के लिए एक व्यावहारिक जीवन मार्गदर्शिका है। यह उन्हें आत्मनियंत्रण, अनुशासन, स्वास्थ्य और आत्मबोध के मार्ग पर अग्रसर करता है। वर्तमान समय में, जब विद्यार्थी मानसिक रूप से अस्थिरता और तनाव से ग्रसित होते जा रहे हैं, तब पतंजलि का योगदर्शन उन्हें मानसिक संतुलन, आत्मबल और जीवन में स्पष्टता प्रदान कर सकता है।
इसलिए, आवश्यकता है कि पतंजलि योगसूत्र को शिक्षा व्यवस्था का अंग बनाया जाए और प्रत्येक विद्यार्थी को इस अमूल्य ग्रंथ के सिद्धांतों से अवगत कराया जाए — जिससे वे केवल ज्ञानवान ही नहीं, बल्कि संतुलित, स्वस्थ और जागरूक नागरिक बन सकें।
आधुनिक समय में पतंजलि योगसूत्र की प्रासंगिकता और उपयोगिता
आज का युग वैज्ञानिक प्रगति, तकनीकी विकास और भौतिक सुख-सुविधाओं का युग है, लेकिन इसके साथ ही यह तनाव, मानसिक अस्थिरता, जीवनशैली संबंधी विकारों और नैतिक पतन का भी युग बनता जा रहा है। ऐसे में महर्षि पतंजलि द्वारा रचित “योगसूत्र” जो लगभग 2000 वर्ष पूर्व लिखा गया था आज पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक बन चुका है।
पतंजलि योगसूत्र न केवल ध्यान और साधना की विधि है, बल्कि यह मानव जीवन को संतुलित, अनुशासित और आत्म-संवेदनशील बनाने की एक समग्र प्रणाली प्रस्तुत करता है। इसकी उपयोगिता आधुनिक समय के हर आयाम व्यक्तिगत, सामाजिक, शैक्षणिक, मानसिक और आध्यात्मिक में स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है।
1. मानसिक तनाव और चिंता में राहत
आज का व्यक्ति लगातार तनाव, समय का दबाव, प्रतियोगिता और अनिश्चितता से जूझ रहा है। योगसूत्र का मूल सूत्र — “योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः” — बताता है कि योग का उद्देश्य मन की चंचलता को नियंत्रित करना है।
❖ ध्यान (Dhyana) और प्राणायाम जैसे अंग मानसिक स्पष्टता, शांति और भावनात्मक संतुलन लाते हैं।
❖ यह डिप्रेशन, एंग्जायटी, ओवरथिंकिंग जैसी समस्याओं को कम करने में अत्यंत सहायक है।2. जीवनशैली विकारों पर नियंत्रण
आधुनिक जीवन में शारीरिक निष्क्रियता, अनियमित खानपान और नींद की कमी से मोटापा, मधुमेह, उच्च रक्तचाप जैसे रोग बढ़ रहे हैं। योगसूत्र में वर्णित आसन और प्राणायाम के अभ्यास से शरीर लचीला, ऊर्जावान और रोगों से मुक्त रहता है।
❖ नियमित योगासन हृदय, पाचन तंत्र और स्नायु प्रणाली को सुदृढ़ बनाते हैं।
❖ यह डिजिटल थकान और स्क्रीन टाइम के प्रभाव को भी कम करता है।
3. नैतिकता और सामाजिक सद्भाव
यम (अहिंसा, सत्य, अस्तेय आदि) और नियम (शौच, संतोष, स्वाध्याय आदि) मनुष्य को नैतिक और सामाजिक रूप से परिपक्व बनाते हैं।
❖ आधुनिक समाज में जहां आत्मकेन्द्रिता और हिंसा बढ़ रही है, वहां पतंजलि के यम-नियम सामाजिक सौहार्द, करुणा और सत्यनिष्ठा को बढ़ावा देते हैं।
4. युवाओं और विद्यार्थियों के लिए अत्यंत उपयोगी
वर्तमान शिक्षा प्रणाली में विद्यार्थियों पर दबाव, तनाव और ध्यान की कमी आम समस्याएं हैं। योगसूत्र का अष्टांग मार्ग विद्यार्थियों को अनुशासन, एकाग्रता और मानसिक शांति प्रदान करता है।
❖ धारणा और ध्यान एकाग्रता को बढ़ाते हैं
❖ यम-नियम विद्यार्थियों में चरित्र निर्माण, आत्मसंयम और अनुशासन को प्रोत्साहित करते हैं
❖ यह एग्ज़ाम स्ट्रेस और प्रदर्शन की चिंता को कम करता है
5. आत्म-ज्ञान और आत्म-विकास की ओर मार्गदर्शन
आधुनिक जीवन में व्यक्ति बाहरी उपलब्धियों में इतना उलझ गया है कि वह स्वयं को पहचानने और समझने का समय नहीं निकाल पाता। पतंजलि योगसूत्र आत्मनिरीक्षण, मौन और आत्म-चेतना के महत्व को रेखांकित करता है।
❖ यह आत्म-ज्ञान (Self-realization) की ओर प्रेरित करता है
❖ व्यक्ति को आंतरिक शांति और संतुलन प्राप्त करने में सहायक होता है6. आध्यात्मिक प्रगति के लिए वैज्ञानिक पथ
पतंजलि योगसूत्र कोई आस्था आधारित धार्मिक ग्रंथ नहीं है, बल्कि यह एक वैज्ञानिक और व्यावहारिक प्रणाली है। आधुनिक युग के वैज्ञानिकों और मनोवैज्ञानिकों ने भी ध्यान और प्राणायाम की सकारात्मक भूमिका को स्वीकार किया है।
❖ यह ध्यान को केवल साधना नहीं, बल्कि मानसिक चिकित्सा का रूप भी बनाता है
❖ दुनिया भर में Mindfulness, Meditation, Wellness की जो लहर चल रही है, उसकी जड़ें योगसूत्र में हैं
महर्षि पतंजलि का योगसूत्र न केवल भारत की आध्यात्मिक धरोहर है, बल्कि यह आज के वैश्विक मानव के लिए जीवन का मार्गदर्शन है। यह शारीरिक स्वास्थ्य, मानसिक शांति, नैतिक व्यवहार और आत्मिक उन्नति — चारों ही स्तरों पर व्यक्ति का उत्थान करता है।
आज के समय में आवश्यकता है कि इस अमूल्य ग्रंथ को केवल ग्रंथालयों तक सीमित न रखा जाए, बल्कि इसे विद्यालयों, विश्वविद्यालयों, कार्यस्थलों और सार्वजनिक जीवन में लागू किया जाए।
पतंजलि योगसूत्र आधुनिक मानव के लिए एक शाश्वत दर्पण है – जो उसे स्वयं को देखने, सुधारने और विकसित करने की प्रेरणा देता है।

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